Wednesday, September 8, 2010

भादी मावस का मेला


                   
आंम तौर पर सूने सूने नजर आने वाले सती मंदिरों की फिजां आज बदली बदली सी नजर आ रही है. सभी कुल देवियों के भक्त देश के कोने कोने से अपनी सती माता को धोक देने आये हैं. इसी कारण तीन - चार दिनों से पूरे शहर में कुछ अलग ही किस्म की रौनक नजर आ रही है . गोली चूरण की दुकानें ग्राहकों से अटी पडी है साथ ही साथ कैर, सांगरी, मेहंदी, रोली, गूंद  के खरीददारों की संख्या कई गुना बढ़ गयी है . संकड़े बाजार में अचानक गाड़ियों की आवा जाही बढ़ जाने से जगह जगह जाम लगे हैं सभी धर्मशालाएं यात्रियों से खचाखच भरी है कहीं तिल रखने की भी जगह नहीं है. सभी सैलानी आज अपनी अपनी कुल देवियों को धोक देंगे और वापस गंतव्य स्थान को प्रस्थान करेंगे  

धीरे धीरे शाम ढलने तक सब कुछ पहले की भांति पटरी पर आने लगेगा.  वही ताले लगी सूनी सूनी हवेलियाँ,  वीरान गलियाँ और सती मंदिरों में इक्के दुक्के दर्शनार्थी. शायद यही इस शहर की नियति है. यहाँ की माटी के करोंडो रत्न आज देश के औद्योगिक जगत में सितारे की तरह देदीप्यमान हैं किन्तु उपेक्षा इस नगर की तकदीर बन चुकी है. अनेकों सैलानी ऐसे हैं जो खुद की हवेलियाँ यहाँ होते हुए भी होटलों या धर्मशालाओं में रुके हैं. कारण बरसों से बंद पडी हवेलियों की सफाई में इतना समय लग जाना है क़ि सारी छुट्टियाँ उसी में गुजर जायेंगी .इसीलिये हर साल ये लोग भादी मावस पर धोक देने आते हैं और धोक देकर यहाँ के निवासियों और प्रशासन को कोसते हुए वापस चले जाते हैं . हर साल यहाँ से जाने वाले परिवारों की फेहरिस्त में दस- पंद्रह नाम बढ़  जाते हैं और साथ ही साथ लम्बी हो जाती है बंद पडी हवेलियों की सूची भी. नगर को बरसों से इंतज़ार है क़ि इस माटी की संतानों के सिर पर विराजमान नगर देव श्री लक्ष्मीनाथ जी का वरद हस्त कभी स्वयं नगर के सिर पर आकर उसकी नियति भी बदलेगा या ये सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा. इस प्रश्न का उत्तर लिहाजा काल चक्र के हाथ में है जिसका इंतज़ार आपको और मुझे बेसब्री से है.

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