Monday, September 20, 2010

मरा नहीं है अभी मेरा फतेहपुर

लोगों  का मानना है क़ि 600 वर्ष पुराना फतेहपुर अब मर चुका है. सेठ साहूकारों की इस नगरी में न जाने कितनी कलाएं पनपीं और परवान चढ़ी. कितने कलाकार, कवि  और हुनरमंद लोग दिए इस नगर ने,  पर लगभग तीन दशक से यह शहर खोखला होने लगा है. इसके घुन किसने लगायी, यह एक यक्ष प्रश्न है? 

पुरातात्विक धरोहर से सम्पन्न इस शहर को शहरवासी ही लूटने को आमादा हो गए | श्रेष्ठ संतों की नगरी में असुरी प्रवृत्तियां तेजी से पनपने लगी और आज भी तेजी से पाँव पसार रही हैं. भ्रष्टाचार का अजगर सारे शहर को लीलने को तैयार है. लक्ष्मीनाथ जी, बुद्धगिरी जी और अमृतनाथ  जी इसे टुकुर-टुकुर देख रहे हैं. प्रवासी जन प्रवास में मस्त हैं. यहाँ नौकरी पेशा लोग अपने घरों में मस्त हैं. शहर को ध्वस्त करने वाले लोग अपनी कारगुजारी में मस्त हैं. शहर की सुध कौन ले?  इसकी गलियां रोजाना संकुचित हो जाती हैं और नरक की भांति सड़ रही हैं. कब्जे करने वालों ने मंदिर, कुँए बावडियों को भी नहीं बख्शा | आपा धापी की इस रामारोळ में नगरपालिका जैसी नगर सुधार की संस्था कान में उंगली डाल कर सो गयी है. पार्षदों को परस्पर 'उतर भीखा म्हारी बारी' का खेल खेलने से ही फुर्सत नहीं है | 

वस्तुतः फतेहपुर मरा नहीं है. इसे कुछ लोग मारने  के प्रयत्न में जुटे हैं,  उन्होंने शहर को बीमार कर छोड़ा है |  क्या फतेहपुर की बीमारी लाइलाज है ? क्या इसका स्वस्थ सांस्कृतिक स्वरुप लौटाया नहीं जा सकता ? ये प्रश्न अगर यहाँ के थोड़े से भी वाशिंदों के मन में उगने लगे तो फतेहपुर क्षय मुक्त हो सकता है. गत वर्षों में यहाँ अंधाधुंध लोग बाहर से आकर बसे हैं, नौकरियां करने वाले लोग आयें हैं, आस पास के देहातों से लोग व्यापार करने यहाँ आकर बस गए पर दुर्भाग्य यह है क़ि वे लोग केवल इस शहर का दोहन करना जानते हैं. उनमें से अधिकाँश का शहर से कोई भावनात्मक सम्बन्ध नहीं है,  शहर से किसी प्रकार का कोई लगाव नहीं है, शहर की दुर्दशा पर अफ़सोस नहीं है और  शहर के रचनात्मक कार्यों  में उनकी भागीदारी नहीं के बराबर है |   कुछ पुराने बुद्धिजीवी जो कुछ करने की मन में टीस रखते हैं, अपना तन मन धन देकर प्रवासियों को यहाँ पैसा लगाने के लिए प्रेरित करते हैं , उन्हें भी मौकापरस्त स्वार्थी लोग बदनाम करने की कोशिश करते हैं और उनके कामों में अड़चन पैदा करते हैं जिससे उनका भी हौसला धीरे धीरे टूटता जा रहा है तथा वो भी इस ढंग की गतिविधियों से परे हटते जा रहे हैं |इसका जीता जागता उदाहरण है बंद पड़े बूबना वाटर वर्क्स, सिंघानिया वाटर वर्क्स, बाजोरिया वाटर वर्क्स, भरतिया अस्पताल, बाजोरिया पाठशाला तथा जीने की आकांक्षा रखते पोद्दार अस्पताल और केडिया हॉस्पिटल, सूर्यमंडल, चमडिया वाटर वर्क्स, चमडिया स्कूल, चमडिया कालेज, चमडिया आयुर्वेदिक हॉस्पिटल,  बूबना आई हॉस्पिटल, पिंजरापोल गौशाला और ना जाने कितनी ही संस्थाएं जिन पर स्वार्थी तत्वों की गिद्ध दृष्टि जमी है  |

अभी भी इस शहर में कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है, उनकी इच्छा शक्ति में कोई कमी नहीं है, कमी है तो सिर्फ हाथ से हाथ मिलाने की | यहाँ के कार्यकर्ता अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति और अपनी माटी से लगाव के चलते प्रवासियों को प्रेरित कर उनके सहयोग से आज भी नगर को नयी पहचान दिलाने की लड़ाई लड़ रहें हैं जिसका जीवंत उदाहरण है गोयनका सती मंदिर, श्री बुद्धगिरि जी की मढी, हालिया निर्मित गणेश मंदिर और मोहनलाल मोदी हॉस्पिटल | ये सभी वे नाम हैं जिन्होंने अपने कार्यकर्ताओं के बल पर अल्प समय  में ही अपनी पहचान आस पास के क्षेत्र में कायम की है और आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं | फतेहपुर वासियों,  जागो,  इस मरते हुए शहर को जीवन दो. गर्व से कहो हम अपने शहर को मरने नहीं देंगे |
                                                                                                                          - देवकीनंदन ढ़ाढणिया        

2 comments:

  1. शहर वासियों को जगाने का अच्छा प्रयास|

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  2. हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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