Thursday, September 2, 2010

पहली चिट्ठी

रेतीले धोरों की सौंधी माटी की महक वाला फ़तेहपुर  शूरवीरों की धरती है, संतों की तपोभूमि है , विद्वानों की यशोभूमि है, धन-कुबेरों की जन्म भूमि है.  अपने  अन्दर  अनेक  रहस्य  छुपाये  अनोखा  और  अनूठा  है .यह फ़तेहपुर यहाँ  की  हर  वस्तु में   रंग -रंगीली ,चिर  पुरातन  नित्य  नवेली अनुकूलता  प्रतिकूलता  समता  विषमता  और  अनेक  विरोधाभासो  का  संग्रह  और  समन्वय  देखा  जा  सकता  है .यहाँ  यह  धोरो  और  मोरो  कि धरती  शिग्रह  ही  तपन  और  ठिठुरन  से  प्रभवित  हो  जाती  है .शायद  इसी  कारन  यहाँ  के  चिंतन  में  समुद्र  की   सी  गहराई  भी  है  तो साधारण  पोखर  सा  छिछलापन  भी ,हिमालय  की  सी  ऊंचाई  है  तो  बालुका  कण  की  लघुता  भी ,जेठ  की  तपन  भी  है  तो  सावन  की  रिमझिम  भी .पौष  माघ  की  ठिठुरन  है  तो  फागुन  की  मादक  बयार  भी .फिनिक्स  पक्षी  की  तरह  मर  मर  कर  पुनः  जीवित  होना  और  जीते  जी  मर  जाना  इस  क्षेत्र  की  विशेषता   रही  है . कालचक्र  के  थपेड़े   इस ख्सेत्र  के  इतिहास  को  बिगड़  न  सके . वे  इसके  पृष्ठ  बनकर  रह  गए .विपदाओ  का  दूध  और  आंधी  की  लोरियां सुन  सुन  कर  यहाँ  के  लोगो ने  जीवन  के  हर  क्षेत्र  में  नए  नए  कीर्तिमान  स्थापित  किये  है .

यहाँ  की  मिटटी  और  मानव  में  अनूठा  तारतम्य  है. बालू  के  कण  हवा  के  साथ  उड़ते  रहते  है ,इस  प्रक्रिया  में  कही  उचे  टीले  बन  जाते  है  तो गहरे  गर्त .इसी  प्रकृति  और  स्वाभाव  का  है  यह  का  मानव ! परिस्थितियों  की  प्रतिकूलता  और  अनुकूलता  से  वह  गगन चुम्बी उड़ान भरता है  तो  भू  स्पर्श  भी .  क्षणे  तुश्ते  क्षणे रुश्ते  रुश्ते  तुश्ते  क्षणे  क्षणे  स्वाभाव  वाले  शेखावाटी  क्षेत्र  के  लोग  वामन  से  विराट बनते  देखे  गए  है तो  करोडपति से  रोडपति  बनते  भी  देर  नहीं  लगती .यहाँ  की  मिटटी शरीर  के  चिपकती  नहीं  मतलब  ममता  तो  है  पर मोह  नहीं .इसी  कारण  तो  इस  धरती  के  बेटे  इसे  छोड़  कर  यत्र  तत्र  सर्वत्र  छा  गए  है .ठीक  काली  पीली  आंधी  की  तरह ,तभी  तो मोहमाया  के  बंधन  तोड़कर  यहाँ  के  संत  महात्मा  ऋषि  परंपरा  का  निर्वाह करते  प्रतीत  होते  है .इस  क्षेत्र  की  राजनीति  भी  इसी परंपरा  का  पालन  करती  इन्द्र  धनुषी  रंग  दिखाती  सी  लगती  है .

बगड़  पिलानी  शिक्षा  के  केन्द्र  है  तो  खेतानी   खनन  द्वारा  सोना  उगलती  है  डूंडलोद ,अमरसर,मंडावा ,सूरजगढ़ ,राम्घाद ,रींगस  यहाँ  के  प्रमुख  अन्य  शहर  है .शाकम्भरी ,सालासर ,लोहार्गल ,खाटू  धाम .जीन  माता ,घड  गणेश्वर ,दो  जानटी  धाम ,बऊ  धाम ,अमृत  आश्रम ,बुद्ध  गिरी  मढ़ी  यहाँ  की  तपोभूमि ,धर्म  भूमि  और  पर्यटन स्थली  है .यहाँ  की  हवेलियों  के  भित्ति  चित्र  यहाँ  के  इतिहास  का  प्रमुख  पृष्ठ  है  तो  कला  का  अनूठा  अजायबघर  भी .स्थापत्य  कला ,शिल्प  कला  के सजीव  उदाहरण  यहाँ  के  कुए , बावरी ,तालाब,स्मारक  और  गढ़  है  तो  काष्ठ कला  और  पत्थर  की  कारीगरी  कला  का  बेजोड़  नमूना  है  और  देशी विदेशी  सैलानियों  के  लिए  चुम्बकीय  आकर्षण .

यहाँ   का  इतिहास  किसी  लेखक  की  लेखनी  का  गुलाम  नहीं  वह  जनजन  की  जबान  पर  लोक  काया और  लोकगीत  बनकर  साहित्य  की  अनमोल धरोहर  बन  गया  है .यहाँ  के  ख्याल , फागुन  गीत , ब्याव्ली  धमाल , नानी  बाई  रो  मायरो , डूंगर  जी  जुहार  जी  के  कथानक , गोगा  जी  के  गीत , पाबू  जी  की  फंड , तेजाजी  भक्त  पूरण  मॉल , मोर   ध्वज  आदि  संगीत  साहित्य और  इतिहास  के  त्रिवेणी  संगम  है .

 इस  प्रकार  सबरस ,सबरंग  समेटे  यह  फतेहपुर शेखावाटी  अंचल  की  धड़कन है  तो  भारत  माता  के  गले  का  हार .इस  भू  भाग  की  साडी  विशेषताओ , गतिविधियों , उपलब्धियों  को  एक  लेख  में  समेटना  कठिन  है .  इस माटी के बेटों को यहाँ की सौंधी खुशबू  से जोड़े रख सकें  और माटी  का मोह सब के ह्रदय में कायम रख सकें ऐसी फतेहपुर नागरिक परिषद् की कोशिश रहती है . इसी क्रम में लगभग दस वर्ष पूर्व एक मासिक पत्रिका लोकवाणी भी हमने प्रारम्भ  की थी  जो क़ि सभी प्रवासी बंधुओं को कोरियर दस माध्यम से निशुल्क भेजी जाती थी. अब इसी कड़ी में  इस ब्लॉग के जरिये हम फिर एक कोशिश शुरू कर रहे हैं जिससे देश देश के कोने कोने में बिखरे मोतियों को एक लड़ी में पिरो सकें. आशा है आप सभी का सहयोग और प्यार हमें मिलता रहेगा

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