Wednesday, November 17, 2010

अल्लाह को प्यारी है कुर्बानी

अल्लाह की राह में कुर्बानी की याद दिलाने वाला त्योहार ईद-उल-अजहा बुधवार को मनाया गया । ईद की नमाज अदा करने के लिए शहर की मस्जिदों में सुबह से ही लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था। तड़के ही घरों में ईद की नमाज की तैयारियां शुरू हो गई थीं। इसके बाद नमाज अदा करने युवा, बड़े और यहां तक कि छोटे बच्चे भी नमाज के लिए पहुंचे। शहर की तमाम मस्जिदों और इबादतगाहों में ईद की नमाज अदा की गयी । हजरत इब्राहीम खलीलुल्लाह की अल्लाह की रजा और हुक्म की तामील में अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने पर आमादा हो जाने के प्रतीक रूप में मनाए जाने वाले इस त्योहार के लिए मंगलवार को मुस्लिम बहुल इलाकों में जोरदार तैयारियां रहीं। गृहिणियों ने ईद की तैयारियां कई दिन पहले ही शुरू कर दी थी। कुर्बानी का वक्त जिल्हिजा को नमाजे ईद के साथ शुरू होकर 12 जिल्हिजा को सूर्यास्त से पहले तक का है। कुर्बानी के लिए मंगलवार को देर रात तक बकरों की खरीदारी होती रही।


बकरीद पूरी दुनिया में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। बताया जाता है कि एक बार पानी की सख्त किल्लत हुई थी और इब्राहीम के बेटे इस्माइल पानी के लिए तड़प रहे थे। उनकी पत्नी हजरत हाजरा ने अपने बेटे इस्माइल के लिए पानी की तलाश में सफा और मरवा पहाड़ियों के सात बार चक्कर लगाए लेकिन पानी नहीं मिला। सातवीं बार जब वह लौटीं तो पानी का एक सोता फूटा और बेपनाह पानी निकलने लगा। उसी का नाम आबेजमजम है जिसे हज करने के बाद प्रत्येक हाजी अपने साथ लाता है।

यही वह पानी है जिसे तीनों मजहबों में पवित्र पानी का दर्जा हासिल है। हज के दौरान सफा और मरवा पहाड़ियों के तवाफ (परिक्रमा) का रिवाज भी हजरत हाजरा के पानी की तलाश में इन पहाड़ियों में जाने से पड़ा। हज के दौरान जितने भी अरकान (रस्में) अदा किए जाते हैं सभी हजरत इब्राहीम, हजरत हाजरा और हजरत इस्माइल से संबंधित हैं। हज और बकरीद का एक-एक अरकान हजरत इब्राहीम को श्रद्धांजलि देना है |

No comments:

Post a Comment