Saturday, January 15, 2011

चली चली रे पतंग मेरी चली रे

कल भोर उगे से शुरू हुए पतंगबाजों के हुडदंग ऩे सारे दिन आसमान को लाल पीली पतंगों से सरोबार रखा | मौसम भी पूरे दिन सुहाना बना रहा। हवा चलने से पतंगबाज जल्दी ही छतों पर चढ़ गए और पतंगबाजी में मशगूल हो गए। डीजे साउंड लगाकर गानों के साथ पतंगों की रनिंग कॉमेंट्री की। पतंगबाज़ी के अनुकूल हवा और सर्दी में अपेक्षाकृत कमी होने से सुबह ही पतंगबाज डीजे के साथ छतों पर चढ़ गए। फिर शुरू हुआ संगीत की धूम के बीच वो काटा, वो मारा और काइपो छै का शोर। यह सिलसिला हवा के रुख के साथ बदलता गया और शाम तक पतंगबाजी ने जोश पकड़ लिया। पतंग उड़ाने में महिलाएं भी पीछे नहीं थी। किसी ने पति तो किसी ने देवरानी-जेठानी और सासू मां के साथ आसमां में पतंगें उड़ाई। इस बीच मीठे पकवानों की सौंधी सुगंध भी बच्चों को पतंगबाजी के बीच अपनी ओर खींच रही थी। शहर की सड़कों और गली-मोहल्लों में एक नजारा और भी खास था। पतंग कटने से पहले उसे लूटने वालों की ‘फौज’ पहुंच जाती।
आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से अटा रहा। इस दौरान कुछ निराली पतंगें भी दिखी। पतंगों पर देशभक्ति, पर्यावरण सुरक्षा जैसे संदेश भी लिखे। कई लोगों ने बड़ी-बड़ी पतंगे उड़ाई तो कईयों ने लंबे चमकिले धागे बांधकर आकर्षक नजारे बनाए। बीच-बीच में ऐसे नजर आने पर लोग वाह भी कह उठे। इधर नन्हें मुन्नों बच्चों का दिन पतंग उड़ाने की मशक्कत में बीता।

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