Tuesday, July 26, 2016

यहां देवताओं की तरह पूजे जाते हैं शहीद

फतेहपुर के दीनवा लाडखानी गांव को शहीदों का गांव कहा जाता है। इस गांव ने देश को नौ शहीद दिए हैं। यहां के अधिकतर सरकारी कार्यालयों, स्कूलों व अस्पताल का नामकरण भी शहीद के नाम पर किया गया है। गांव से करीब 250 युवा तीनों सेनाओं में कार्यरत हैं और करीब इतने ही पूर्व सैनिक हैं। गांव में तीन शहीदों की प्रतिमाएं भी लगी हैं। ग्रामवासी लोक देवताओं की तरह इन शहीदों को पूजते हैं। गांव के सरपंच कन्हैयालाल ने बताया कि गांव की आबादी चार हजार से अधिक हैं। यहां के युवाओं में सेना में जाने का जज्बा देखते ही बनता है। गांव के दो सरकारी स्कूलों का नामकरण शहीद मुखराम बुढ़ानिया और शहीद धर्मवीर शेखावत के नाम पर किया है। गांव में खुले उप स्वास्थ्य केंद्र का नामकरण भी शहीद सूरज भगवान बुढ़ानिया के नाम पर किया गया है।

 गडोला के बनवारी बगड़िया करगिल युद्ध में शेखावाटी के पहले सपूत थे, जिन्होंने पाकिस्तान फौज की घुसपैठ की जानकारी  दी थी।
            बगड़िया 4 जाट रेजीमेंट के सिपाही थे। द्रास सेक्टर में बजरंग पोस्ट पर तैनात थे। 15 मई 1999 को वे कैप्टन सौरभ कालिया के नेतृत्व में गश्त पर निकले। जहां घात लगाए बैठे घुसपैठियों ने हमला कर दिया। कैप्टन कालिया, बनवारी बगड़िया और उनके साथियों ने दुश्मनों से मुकाबला किया। मुठभेड़ में गोलियां खत्म होने पर इन सैनिकों को पाकिस्तानी सेना ने जिंदा पकड़ लिया। पांचों ने 22 दिनों तक अमानवीय यातनाएं झेली। शरीर को सिगरेटों से दागा, नाक, कान व होंठ काट लिए, उंगली काट ली। कानों में लोहे की गरम सलाखें डाली और आंखें निकाल ली। भारत ने इन सैनिकों की रिहाई के लिए प्रयास शुरू किए तब इन सैनिकों की कनपटी पर गोली मार दी। 9 जून 1999 को इन सैनिकों के क्षत-विक्षत शव भारत को सुपुर्द किए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि सैनिकों को जिंदा रहते हुए यातना दी गई थी।

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